When you leave your house behind for a new beginning,
Take along this recipe, to make an unknown city, your own.
In a big vessel take,
the pain of separation,
Mother’s tears,
Dad’s scolding,
Little arguments with your brother and mix them all.
Let it boil until you become well adjusted to them.
Then, according to your needs add,
3 to 4 friends,
A roommate who will scold you like your mom and another whom you can scold.
2 to 3 corners of the city where you can cry alone.
Let it cook for sometime.
Add a little bit of late night gossip, few games of cards and some deep conversations. Mix it well.
Then add a spoonful of sweet talks, abuses, care, and lots of love.
If you want, you can add small amount of fights and then to make it more delicious add tricks of reconciliation.
To make this a perfect dish , serve it in a bowl called relation for life.
Garnish it by sprinkling some photos and smiles.
There you have, your very own house in a foreign city.
समंदर के किनारे की लहरें
कुछ बंधी-बंधी सी हैं
बादलों में भी कुछ
तलखियाँ सी मौजूद हैं
दरिया भी बेचैन सा
घुंट के बह रहा है
सबा भी जाने-अनजाने
क़फ़स मैं कैद सी है
एक बार बालकनी में आ कर
तौलिये से अपने गीले बाल झटको तो ज़रा
बंद पड़ी इस क़ायनात को
ज़रा जुम्बिश मिले
-Awinder Singh, based on the prompt Restless, बेचैनी
کئی دفہ ایسا ہوتا ہے
کی انسان یے بھول جاتا ہے
یے جو زندگی ہے
وہ بس ایک ٹھہراؤ ہے
اصلی منزل سے پہلے کی۔
شاید اب تو یے عادت سی ہے
ماضی اور مستقبل کے خیال
اور منصوبے میں اس طرح جینے کی
کی انسان یے بھول جاتا ہے
یے جو زندگی ہے
اس کی ساری مٹھاس
بس اس لمحے کو معطل کرنے میں ہے۔
Kai dafa Aisa hota hai
Ki insaan ye bhool jaata hai
Ye jo zindagi hai
Wo bas ek thehrav hai
Asli manzil se pehle ki
Shayad ab toh ye aadat si hai
Maazi aur mustaqbil ke khayaal
Aur mansoobe mein aise jeene ki
Ki insaan ye bhool jaata hai
Ye jo zindagi hai
Uss ki saari meethaas
Bas iss lamhe ko muatal krne mein hai.
Maazi-past, mustaqbil-future, mansooba-plan, muatal krna-pause
-Faiza Ahmed, an Urdu poem based on the prompt Pause
वैशाख. -twigs
.
वैशाख को महिना
मा महिला तिमीलाई भेटेको।
त्यो दिन, हावा हरु मा
फूलहरू को मिठास थियो, चरा हरुले गीत गाएको थियो,
त्यो दिन को त्यस समयलाई
बिर्सिन खोचु।
तर भावना हो, वैशाख को महिना जस्तै, फेरि आई हाल्छ।
धेरै रंग र बिस्वास लिएर।
तर के महिना को पनि अन्त हुन्छ,
यथार्थता छन् त भावना मात्रै।
-Avinam, a Nepali poem
उसकी यादों ने मकान कर लिया तेरे ज़हन में
उनसे पूछ तेरा मकीं कहाँ रहता है
ज़ीस्त की फितरत है रवानगी
कौन सदा मशहूर, कौन सदा हसीन रहता है
श्याह काले अब्र से
बरसात की तवक्को बहोत करते हैं,
पर जो जैसा दिखता है
वैसा नहीं रहता है
गर बरसो बाद तुझे होश बरपा
की मुझसे मेरा हाल पूछे
मैं भी पूछूँगा तुझसे, क्या जो पहले था
वो हमेशा वहीं रहता है?
यूँ इनायत बरसाता नहीं है कोई
कोई मक़सद उसका भी होगा
आसार-ए-सहर ना समझना इसे
कोई यूँ ही तेरी खुशियों का तलबगार नहीं रहता।
-Anny
3 surprises
Buildingच्या छतावर उभा असताना मी
म्हटलं की मला ढकल खाली
माझ्या छातीत स्फोट व्हावा तसे दोन हात
मला आदळलेआणि प्रवास सूरी झाला
अपेक्षा होती त्याप्रमाणे मी जमीन स्पर्शलीनव्हती अजून
म्हणून खाली बघतो तर मी तरंगत होतो
मला धकलणारे दोन हात त्यांच्या डोळ्यांनी हा मार्मिक प्रसंग निवांत पाहत होते
Surprise 1
//
माझ्या घरात एक भूत राहतय सध्या
त्यांना विचारलं तर ते बोलत नाहीत अस समजलं
म्हणजे बोलुशकत नाहीत
त्यांना इच्छा आहे
पण जन्मापासून असलेला हा fault
त्यांना sign language येते पण ती आम्हाला कुणाला येत नाही
मला त्यांनी तो शिकवली
आता मला अजून भुतं दिसतात
घरात, दारात
आणि lift मध्ये
Suprise 2
//
माझ्या बोक्याचे नाव lenin
लेनिन चे डोळे निळे
केस काळे काळे, एवढे की रात्री तो अदृश्य होतो
नाक लाल
तो खूप मस्ती करतो
मुकाट फिरतो बिनधास्त
आनंदी बोका
संध्याकाळी दिवा लावून लिहायला बसतो
मिश्या चोळत
त्याने आस-पास चे पाच-पंचवीस बोके गोळा करून दल बनवलाय
चार-सहा कुत्रे पण असतात त्यांच्यात
सोडून दिलेले किंवा त्रासलेले /
आज लेनिन चौथ्या मजल्यावरच्या पुरोगामी आजोबांना चावला
Surprise 3
बड़े बुजुर्ग कहते है
धरती से धैर्य सीखो
कितनी शांत कितनी सुंदर
सब जीवों की जननी है ये।
पर मेरा ख्याल है कि
ये सब ढकोसले हैं
लोगों की जुबां कुछ कहती है
काम कुछ और।
जो घरों में बंद हो
आज हम बेचैन जी रहे है
वो बुरा वक्त नहीं
हमारी गलतियों का नतीजा है
हमारा दामन बेदाग नहीं
काली स्याहियों से सना है
माँ को आकुल कर के
बच्चे शांत कैसे रह सकते है भला।
-Madhu Yamini, based on the prompt Restless, बेचैन
મેઘધનુષ પર બાણ ચઢાવો,
આમ દિલ પર ઘાવ લગાવો.
.
ના સમજાયો શેર આ મારો,
એની જોડે આંખ મિલાવો. .
પ્રેમ કરવો સમજાવે છે?
મત્સ્યને તરતાં શીખડાવવો?
.
ધાર કાઢી ને ચાંદ ની આજે,
પાણીપર એનું નામ લખાવો. મોગરો વાટો ચંદન ભેગો,
એમાં ખુદ ની જાત મિલાવો. લીપો પછી કોઈ ગઝલ મર્મની,
શ્વાસે શ્વાસે યાદ કરાવો. .
.
Draw an arrow over the rainbow,
In such ways, wound your heart. .
Didn't understand this couplet?
Lock eyes with her once. .
You are teaching how to love?
What merits teaching fishes to swim?
.
Sharpen the moon tonight, and
On water, write her name down. .
Mix jasmine and sandalwood, and
then add yourself to the mix. .
Write out a ghazal of Marm with that mixture,
And remember it with every breath. .
-Written and translated from Gujarati by Marm Dixit
સાધારણ રીતે
આ કવિતા અંગ્રેજી
માં લખાઈ હોત
સાધારણ રીતે
હું એક જ ઘરમાં પણ દૂર,
દૂર હોત મમ્મીથી
સાધારણ રીતે
બધુ ખૂબ સાધારણ હોત,
આ કવિતા પણ
.
Rough translation:
1. Normally this poem would've been written in English
2. Normally, I would've been far away from my mother even within the same house
3. Normally, everything would've been very normal, even this very poem
-Dhruvi Modi, a poem composed of three haikus in Gujarati
-Aazar Anis, based on the prompt Window